वज्रपात
आज सुबह से ही मंदा बर्तन पटक पटक झुंझला रही थी।जीवन जी अपनी पत्नी के तेवर देख समझ गए की आज इनके मन के विपरीत कोई बात हुई है, वैसे उनको कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था उनको अपने समय पर चाय खाना मिल जाता तो वो मस्त रहते ।
बेटियां अपने घर में सुखी है खैर से बेटा बहू भी २ साल के पोते के साथ पास ही शहर में खुशी से है।
मंदा ने भी अपने जीने के शौक से समझौता नहीं किया बूढ़ी और बीमार सास को पड़ोसियों के सहारे छोड़ दूर दूर के रिश्तेदारों की शादियों में जाना नाचना गाना,सखियों के साथ धार्मिक टूर पर जाना सासूजी की पेंशन निकलवा कर चंद रुपए उन्हें पकड़वाकर नई फसल आने पर समय समय पर गहने गढ़वाती रही।
गांव में रहते हुए भी पूरी आजादी से अपनी जिंदगी जी !स्त्री विमर्श के लिए उसके जीवन में कोई बिंदु नहीं था जिस पर कोई बैनर बात कर सके?सिवाय इसके की मंदा सबका उदाहरण बन सकती है ?
जीवन जी ने आखिर पूछ ही लिया?
क्या बात है?
तो गुस्से से गोरा चेहरा लाल करते हुए बोली ?तुम्हारे लाडले का का फोन आया था!जीवन जी सोचने लगे मेरा लाडला कब से हो गया?
आगे बोली मैं अपना घर छोड़कर उसकी चाकरी करू?
क्या हुआ बताओ तो?
वो कह रहा है बहू की स्कूल में नौकरी लग गई है छोटू को संभालने
आ जाओ और यहीं रहना होगा?
ये कहते कहते मंदा बर्तन जमाते जमाते कढ़ाई पटक दी और सिर पर हाथ धरकर बैठ गई।
जीवन जी का चेहरा भी भाव विहीन हो गया और मन ही मन सोचने लगे
सदा ही अपनों का हक मारकर लेने वाली अपने को ही देने में
ये तो" वज्रपात" ही हो गया ? लेन देन के चक्कर में।
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